थायरॉयड 

थायरॉयड का आयुर्वेदिक उपचार विकल्प!

थायरॉयड 

थायरॉयड का आयुर्वेदिक उपचार विकल्प!

थायराइड ग्रंथि क्या है?

आयुर्वेदिक साहित्य में थायरॉयड विकारों को अक्सर “गलगंड” कहा जाता है, जिसमें ‘गला’ का मतलब है गला और ‘गंड’ का मतलब है सूजन या गांठ। इसे गले के चक्र का हिस्सा माना जाता है, और इसका उचित कार्य शरीर में चयापचय संतुलन, हार्मोन स्राव और संपूर्ण शारीरिक प्रक्रियाओं को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

आयुर्वेद थायरॉयड विकारों का उपचार ‘वात’ दोष के असंतुलन के कारण करता है, जो थायरॉयड से जुड़ा हुआ है। इस कारण, थायरॉयड के आयुर्वेदिक उपचार से निश्चित रूप से सकारात्मक और प्रभावी परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं, जब इसे किसी पेशेवर की देखरेख में एक समग्र दृष्टिकोण के साथ अपनाया जाता है। यह उपचार प्राकृतिक जड़ी-बूटियों पर आधारित दवाओं और स्वस्थ जीवनशैली को अपनाकर हार्मोन्स के असंतुलन को स्थिर करने में मदद करता है।

थायरॉयड मुख्य रूप से थायरॉयड हार्मोन के अपर्याप्त उत्पादन के कारण होता है। थायरॉयड ग्रंथि की संरचनात्मक या कार्यात्मक दोष से हार्मोन का अत्यधिक या अपर्याप्त उत्पादन हो सकता है।

थायराइड ग्रंथि क्या है?

आयुर्वेदिक साहित्य में थायरॉयड विकारों को अक्सर “गलगंड” कहा जाता है, जिसमें ‘गला’ का मतलब है गला और ‘गंड’ का मतलब है सूजन या गांठ। इसे गले के चक्र का हिस्सा माना जाता है, और इसका उचित कार्य शरीर में चयापचय संतुलन, हार्मोन स्राव और संपूर्ण शारीरिक प्रक्रियाओं को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

आयुर्वेद थायरॉयड विकारों का उपचार ‘वात’ दोष के असंतुलन के कारण करता है, जो थायरॉयड से जुड़ा हुआ है। इस कारण, थायरॉयड के आयुर्वेदिक उपचार से निश्चित रूप से सकारात्मक और प्रभावी परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं, जब इसे किसी पेशेवर की देखरेख में एक समग्र दृष्टिकोण के साथ अपनाया जाता है। यह उपचार प्राकृतिक जड़ी-बूटियों पर आधारित दवाओं और स्वस्थ जीवनशैली को अपनाकर हार्मोन्स के असंतुलन को स्थिर करने में मदद करता है।

थायरॉयड मुख्य रूप से थायरॉयड हार्मोन के अपर्याप्त उत्पादन के कारण होता है। थायरॉयड ग्रंथि की संरचनात्मक या कार्यात्मक दोष से हार्मोन का अत्यधिक या अपर्याप्त उत्पादन हो सकता है।

थायरॉइड ग्रंथि विकार दो के प्रकार 

अतिसक्रियता

यह थायरॉयड का एक प्रकार है, जो दुनिया भर में ज्यादातर महिलाओं को प्रभावित करता है, जिसकी दर लगभग 4-10% है। आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार, इसे एक चिकित्सा स्थिति के रूप में जाना जाता है। इसे मुख्य रूप से “कफ दोष” के असंतुलन के रूप में समझा जाता है, जिसमें “वात” दोष की संभावित द्वितीयक भूमिका भी हो सकती है। यह एक ऑटोइम्यून विकार है, जिसमें थायरॉयड हार्मोन का उत्पादन कम होता है, जिससे थकान और वजन बढ़ने जैसे लक्षण होते हैं। थायरॉइड हार्मोन (Thyroid harmone) की अधिकता के कारण शरीर में चयापचय यानी मेटाबोलिज्म (Metabolis) बढ़ जाता है।

अल्पसक्रियता

आयुर्वेद में हाइपरथायरॉयडिज्म को “भस्मक रोग” कहा जाता है। जनसंख्या में हाइपरथायरॉयडिज्म की दर लगभग 1% है। आयुर्वेद में इसे पित्त दोष के असंतुलन के रूप में देखा जाता है, जो शरीर में चयापचय प्रक्रियाओं और तापमान को नियंत्रित करता है। जब पित्त अत्यधिक उत्तेजित हो जाता है, तो यह थायरॉयड ग्रंथि को अत्यधिक सक्रिय बना सकता है, क्योंकि हाइपरथायरॉयडिज्म शरीर में थायरॉयड हार्मोन का अत्यधिक स्राव होता है। इस रोग के लक्षणों में तेज़ वजन कम होना, शरीर का तापमान बढ़ना, चिड़चिड़ापन, और चयापचय गतिविधि में वृद्धि शामिल हैं।

थायरॉइड ग्रंथि विकार दो के प्रकार 

अतिसक्रियता

यह थायरॉयड का एक प्रकार है, जो दुनिया भर में ज्यादातर महिलाओं को प्रभावित करता है, जिसकी दर लगभग 4-10% है। आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार, इसे एक चिकित्सा स्थिति के रूप में जाना जाता है। इसे मुख्य रूप से “कफ दोष” के असंतुलन के रूप में समझा जाता है, जिसमें “वात” दोष की संभावित द्वितीयक भूमिका भी हो सकती है। यह एक ऑटोइम्यून विकार है, जिसमें थायरॉयड हार्मोन का उत्पादन कम होता है, जिससे थकान और वजन बढ़ने जैसे लक्षण होते हैं। थायरॉइड हार्मोन (Thyroid harmone) की अधिकता के कारण शरीर में चयापचय यानी मेटाबोलिज्म (Metabolis) बढ़ जाता है।

अल्पसक्रियता

आयुर्वेद में हाइपरथायरॉयडिज्म को “भस्मक रोग” कहा जाता है। जनसंख्या में हाइपरथायरॉयडिज्म की दर लगभग 1% है। आयुर्वेद में इसे पित्त दोष के असंतुलन के रूप में देखा जाता है, जो शरीर में चयापचय प्रक्रियाओं और तापमान को नियंत्रित करता है। जब पित्त अत्यधिक उत्तेजित हो जाता है, तो यह थायरॉयड ग्रंथि को अत्यधिक सक्रिय बना सकता है, क्योंकि हाइपरथायरॉयडिज्म शरीर में थायरॉयड हार्मोन का अत्यधिक स्राव होता है। इस रोग के लक्षणों में तेज़ वजन कम होना, शरीर का तापमान बढ़ना, चिड़चिड़ापन, और चयापचय गतिविधि में वृद्धि शामिल हैं।

थायरॉइड रोग होने के कारण

  • ग्रंथि में बदलाव – थायरॉयड विकार अक्सर ग्रंथि के कार्य में बदलाव के कारण होते हैं। जब ग्रंथि का कार्य सही से नहीं होता है, तो यह आवश्यक हार्मोन उत्पादन की सीमा तक नहीं पहुंच पाती, जिससे हार्मोन का असंतुलित उत्पादन होता है|

  • पिट्यूटरी ग्रंथि का कार्य में गड़बड़ी – थायरॉयड ग्रंथि को पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा उत्पन्न हार्मोन से निर्देश मिलते हैं, जिससे वह चयापचय प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक हार्मोन रिलीज़ करती है।

    जिससे ऊर्जा स्तर, चयापचय पर प्रभाव पड़ता है।

  • तनाव – तनाव थायरॉयड ग्रंथि पर असर डाल सकता है, जिससे इसके हार्मोन उत्पादन में बदलाव आ सकता है। यह असंतुलन शरीर के चयापचय दर और सामान्य स्वास्थ्य पर अतिरिक्त प्रभाव डाल सकता है।

  • हार्मोनल असंतुलन – हार्मोनल असंतुलन थायरॉयड रोगों के विकास का मुख्य कारण है, जो आगे चलकर ऊर्जा स्तर और चयापचय प्रबंधन पर प्रभाव डालता है। थायरॉयड रोग महिलाओं को पुरुषों से अधिक प्रभावित करता है।

  • आयोडीन की भूमिका – थायरॉयड ग्रंथि शरीर के चयापचय को संतुलित करने के लिए हार्मोन उत्पन्न करती है, साथ ही सामान्य स्वास्थ्य को बनाए रखती है। आयोडीन की कमी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है, जैसे गोइटर।

थायरॉइड रोग होने के कारण

  • ग्रंथि में बदलाव – थायरॉयड विकार अक्सर ग्रंथि के कार्य में बदलाव के कारण होते हैं। जब ग्रंथि का कार्य सही से नहीं होता है, तो यह आवश्यक हार्मोन उत्पादन की सीमा तक नहीं पहुंच पाती, जिससे हार्मोन का असंतुलित उत्पादन होता है|

  • पिट्यूटरी ग्रंथि का कार्य में गड़बड़ी – थायरॉयड ग्रंथि को पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा उत्पन्न हार्मोन से निर्देश मिलते हैं, जिससे वह चयापचय प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक हार्मोन रिलीज़ करती है।

    जिससे ऊर्जा स्तर, चयापचय पर प्रभाव पड़ता है।

  • तनाव – तनाव थायरॉयड ग्रंथि पर असर डाल सकता है, जिससे इसके हार्मोन उत्पादन में बदलाव आ सकता है। यह असंतुलन शरीर के चयापचय दर और सामान्य स्वास्थ्य पर अतिरिक्त प्रभाव डाल सकता है।

  • हार्मोनल असंतुलन – हार्मोनल असंतुलन थायरॉयड रोगों के विकास का मुख्य कारण है, जो आगे चलकर ऊर्जा स्तर और चयापचय प्रबंधन पर प्रभाव डालता है। थायरॉयड रोग महिलाओं को पुरुषों से अधिक प्रभावित करता है।

  • आयोडीन की भूमिका – थायरॉयड ग्रंथि शरीर के चयापचय को संतुलित करने के लिए हार्मोन उत्पन्न करती है, साथ ही सामान्य स्वास्थ्य को बनाए रखती है। आयोडीन की कमी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है, जैसे गोइटर।

थायरॉयड के लक्षण

  • ऊर्जा की कमी – थायरॉयड हार्मोन शरीर के चयापचय को नियंत्रित करते हैं, ऊर्जावान बनाए रखते हैं। अगर इन हार्मोन का उत्पादन कम होता है, तो शरीर का चयापचय धीमा हो जाता है, जिससे थकान, कमजोरी और सुस्ती महसूस होती है।

  • वजन में बदलाव – थायरॉयड विकारों के दौरान वजन में अचानक वृद्धि या घटाव देखा जा सकता है। हाइपोथायरॉयडिज़म में हार्मोन का कम स्राव वजन बढ़ने का कारण बन सकता है।

  • नींद में विकार – यह विशेष रूप से हाइपोथायरॉयडिज़म के कारण एक सामान्य समस्या है। अपर्याप्त थायरॉयड हार्मोन स्तर शरीर के सर्केडियन रिदम को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे नींद के चक्र में असंतुलन हो सकता है।

  • नींद से संबंधित समस्याएं – थायरॉयड विकारों से नींद में गड़बड़ी हो सकती है। हाइपोथायरॉयडिज़म में शरीर के हार्मोनल असंतुलन के कारण नींद की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे रात में बार-बार जागने और सुबह थका हुआ महसूस होता है।

थायरॉयड के लक्षण

  • ऊर्जा की कमी – थायरॉयड हार्मोन शरीर के चयापचय को नियंत्रित करते हैं, ऊर्जावान बनाए रखते हैं। अगर इन हार्मोन का उत्पादन कम होता है, तो शरीर का चयापचय धीमा हो जाता है, जिससे थकान, कमजोरी और सुस्ती महसूस होती है।

  • वजन में बदलाव – थायरॉयड विकारों के दौरान वजन में अचानक वृद्धि या घटाव देखा जा सकता है। हाइपोथायरॉयडिज़म में हार्मोन का कम स्राव वजन बढ़ने का कारण बन सकता है।

  • नींद में विकार – यह विशेष रूप से हाइपोथायरॉयडिज़म के कारण एक सामान्य समस्या है। अपर्याप्त थायरॉयड हार्मोन स्तर शरीर के सर्केडियन रिदम को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे नींद के चक्र में असंतुलन हो सकता है।

  • नींद से संबंधित समस्याएं – थायरॉयड विकारों से नींद में गड़बड़ी हो सकती है। हाइपोथायरॉयडिज़म में शरीर के हार्मोनल असंतुलन के कारण नींद की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे रात में बार-बार जागने और सुबह थका हुआ महसूस होता है।

थायरॉयड का आयुर्वेदिक समाधान –

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हमारी आयुर्वेदिक दवा कैसे काम करती है?

  • किडनी के कार्य को सुधारती है, जिससे बेहतर फिल्ट्रेशन होता है।

  • शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करती है, जिससे किडनी पर दबाव कम होता है।

  • किडनी की सूजन और जलन को कम करती है, जिससे आराम मिलता है।

  • किडनी की कार्यक्षमता को बढ़ाती है, जिससे समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है।

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